दूसरों की खुशी के लिये अपना ही अस्तित्व खो देना,
क्या सही हैं, हर किसी के अनुसार खुद को परिवर्तित करना।
गर हैं सही, और सफलता की हैं पहचान यही,
तो नही चाहिये ऐसी सफलता मुझे,
ना ही ऐसे रिश्तो से मेरा कोई सरोकार हैं।
मुझे तलाश हैं ऐसे अपनो की,
जिनको मेरा यही रूप स्वीकार हैं।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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