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Saturday, 17 November 2018

कुछ ऐसे ही

मैने तो अपनाया था तुम्हे मन से,
गुण अवगुण के भेदो को परे रख के।
कहो कैसे अब उस मन को समजाऊ मैं,
जो सहारा हैं धड़कन का मेरी कैसे उसे भुलाऊ मैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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