मैने तो अपनाया था तुम्हे मन से, गुण अवगुण के भेदो को परे रख के। कहो कैसे अब उस मन को समजाऊ मैं, जो सहारा हैं धड़कन का मेरी कैसे उसे भुलाऊ मैं।
आयुष पंचोली ©ayush_tanharaahi
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