जब घर में बेटी आये, तो लक्ष्मी वो कहलाये,
खुशियां दे वो सबको, और सारे गम पी जायें ।
कभी बेटी,कभी बहना, कभी किसी दोस्त के रूप मे ,
हर पल हस्ती जाये,
काश! ऐसी एक बेटी हर घर मे आयें।
एक घर मे बेटी के रूप मे आये, माँ-बाप को खुशी दे,
कुछ सालों बाद जो किसी घर की बहु के रूप मे विदाई पायें।
एक घर के संस्कारों से,दुसरे घर मे ज्योत जलायें,
अपने माँ-बाप की दुनिया छोड़कर जो दुसरी दुनिया मह्कायें,
तब वो बेटी बहु कहलाये,
किसी की आत्मा से ,किसी की अर्धांगनी बनकर,
एक साथ दो कुलों की मान,प्रतिष्ठा को अपने कन्धो पर उठाये,
ऐसी शक्ती ही बेटी से बहु के रूप मे ढल पायें,
काश! ऐसी ऐसी बेटी, ऐसी बहु हर घर मे आयें।
सारे दुख ,तकलिफौं को सहकर भी जब वो परिवार मे एक चिराग लायें तब बेटी से बहु बनीं जो , अब वो माँ कहलाये।
हर पल जो अपनो के लिये बितायें,
हर गम मे भी वो खुशी ढूँड़ लाये,
अपने बच्चों की खातिर जो दुनिया से लड़ जायें,
जो हर पल कुर्बानी दे, और अपनो की आंखो के सारे आँसूं पानी समझ कर पी जायें,
सबकी कड़वी बातें सुने,फिर भी सबको अपना बनाकर ही जो सुख पायें,
चार दीवारों मे जो सीमट कर,बिना शिकायत ही अपनी सारी जिन्दगी सिर्फ परिवार की खुशी के लिये जी जायें,
यही हैं, वह बेटी जो बहु से माँ के रूप मे ढ़ल जायें।
एक साथ जो कई रिश्तों को निभायें, बेटी, बहु और माँ के रूप मे जो हर पल खुशियाँ लायें, काश ऐसी लक्ष्मी हर घर मे आयें,
काश ऐसी बेटी हर घर मे आयें।
आयुष पंचोली
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©ayush_tanharaahi
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