कलम जब जब अपनी मर्यादा खोने लगती हैं,
काव्य की तब तब क्षति होने लगती हैं ।
भाषा की अभद्रता बता देती हैं,
ज्ञान की कहां किस तरह दुर्गति होने लगती हैं ।
संस्कारो का होता हैं वहा हास,
अश्लीलता जहां मस्तिष्क पर हावी होने लगती हैं।
शायरी गाली हो जाती हैं,
कविता कीसी कौने मे रोने लगती हैं,
कलम जब जब अपनी मर्यादा खोने लगती हैं.......!!!!!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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