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Saturday, 3 November 2018

कुछ ऐसे ही

जिस तरह मिलते हैं, धरती और अम्बर दूर कहीं क्षितिज पर,
क्या हम भी कभी मिल पायेंगे कभी ,किसी दिन ,कही ,किसी रोज...?
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अक्सर यह ख्याल दिल मे मेरे आता हैं,
तुझे सोचता हूँ तो पुरानी यादों से रिश्ता फिर जुड़ जाता हैं।

क्या खुशी, क्या गम, क्या मोहब्बत और क्या सितम,
तेरा हर एक वादा रह-रह कर बार-बार याद आता हैं।

तु तेरी दुनिया की रंगत मे मशरूफ कैसी हैं,
मेरा हर पल यहाँ सिर्फ तेरी राह तकता हैं।

क्या एहसास नही तुझे थोडा भी मेरे दर्द-ए-तन्हाई का,
मेरे अश्को मे भी नजर आता हैं दर्द तुझसे जुदाई का।

मैं लिखता हूँ तुझे, अपने एहसासो की शिद्दत से,
किसी को क्या पता दिल रोज मेरा कितना रोता हैं।

शब्द पन्नो पर बिखरते हैं, लहू आँखो से छलकता हैं,
कोई जाने गा क्या-क्या मेरे साथ घटता हैं।

तुझे भूलूँ भला कैसे कोई तरकीब बतला दे,
नही तो मुझको मेरी धड़कनो से राहत दिलवा दे।

नही अब और हिम्मत हैं की खुद को रोज मरता देखूँ मैं,
इससे तो भला हैं तु मुझे इक रोज दफना दे।

मोहब्बत से मैं अब नफरत बड़ी शिद्दत से निभाऊँगा,
जिन्दगी को मोहब्बत मे तबाह अब मैं कर जाऊँगा।

मेरी हर एक कहानी पर अब सारी दुनिया रोयेगी,
जा बेवफा तुझे भी मोहब्बत अब नसीब ना होयेगी।

मेरे जज्बातों को तुने पागलपन का नाम दिया था ना,
इन्ही जज्बातो की शिद्दत को ,पाने को तु हर शाम रोयेगी।

मेरे हर दर्द का एहसास एक ना एक दिन तुझे भी होना हैं,
मेरा तो खो गया सबकुछ, तुझे जबसे हूँ खो बैठा ।

मेरा जो हाल अब हैं ना,
वो तेरा हाल ,कल होना हैं ।

कर्मों से भला अपने कहाँ कोई बच पाता हैं,
वो ईश्वर सबको अपनी असल औकात दिखाता हैं।

आज मेरा सब खोया हैं,कल तेरा भी जायेगा,
अभी वक्त पलटने दो मेरा आज तुम्हारा कल बन जायेगा।

आयुष पंचोली
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