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Thursday, 18 October 2018

कुछ ऐसे ही

मुझे तन्हाईयों से प्यार नही था, ना ही मुझे कुछ छुपाने की आदत थी। ना जाने क्यु अब ये दिल टुट सा गया हैं, लोगो से दर्द छुपाना अच्छा लगता हैं। तन्हाईयों मे आँसु बहाना अच्छा लगता हैं। ना जाने कैसा रोग दियां हैं, इस बेवफा मोहब्बत ने मुझे, ना मरने की तमन्ना हैं, ना जीना अच्छा लगता हैं। बस अपनी तन्हाईयों मे , उसकी यादों के पहलुओ मे, उसे पाने की ख्वाईश, उसे अपना बनाने की तमन्ना , उसे खुशियों भरा संसार लाकर देना अच्छा लगता हैं। मगर अफसोस यह सब बस ख्वाब ही रह गया, और मैं तन्हा था और बस मेरी तन्हाईयों के साथ तन्हा ही रह गया । (अंजान से सफर की तलाश मे एक तन्हा राही).......
©ayush_tanharaahi

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