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Thursday, 18 October 2018

एक प्रश्न

"तुझे चाहा तो था, रब से भी बढकर मैने,
पर तुझे कह नही सका।

मेरा एक सपना थी तु,
जिसे मैं कभी पा ना सका।

किससे गिला करुँ मैं,
तुझे खोने के बाद,
तुझे तो मैं कभी अपना ही नही लगा।

मेरे लिये तो तु ही जन्नत थी मेरी,
मैं तुझे तेरी जिन्दगी भी नही लगा।

ना जाने क्यु खुदा ऐसे खेल खेलता हैं,
नही लिखा हैं जो तकदीर मे , क्यु दिल उसी से जोडता हैं।

कहता है ये मांगोगे अगर मुझसे तुम कुछ भी दिल से,
उसे मैं तुम्हे जरुर दूँगा।

तो तु ही बता ऐ खुदा ,
मैने कब मेरी जान को तुझसे दिल से नही माँगा,
माँगा हैं बस उसे ही हर पल ,
हर दुआ मे बाकी और कुछ नही माँगा।

फिर भी तुने मेरे दिल मे उसी को बैठाया हैं,
जिसने अपने दिल से हमे ठुकराया हैं।

जिसे चाहा था मैने तुझसे भी बढकर,
वही आज मेरा दिल तोड़ कर जा रही हैं।

भुलाकर मुझे वो,
अपने हाथो मे मेहंदी किसी और की सजा रही हैं।

रुला कर मुझे वो खून के आँसू,
माँग अपनी सजा रही हैं।

जला कर खुशियां मेरी वो सारी,
फेरों की वेदी अपनी सजा रही हैं।

जानता हु मैं,
उसके दिल मैं अभी भी कही हूँ मैं,
भले ही मुझे वो कुछ कह ना पायी हो।

अब मिलूंगा उससे दूर कही जाके किसी और जहाँ मे,
क्युकी अपनी डोली के साथ वो मेरी अर्थी भी सजा रही हैं।

फिर भी आज खुश हूं मैं,
क्युकी नही पा सका मैं उसे तो क्या,
उसकी यादें अपने साथ ले जाऊँगा।

फिर भी एक प्रश्न मन मे रह जायेगा,
जिसका उत्तर शायद कभी कौई नही ढुंढ़ पायेगा,
हर आशिक रोयेगा किस्मत पर अपनी और यहीं फरमायेगा,
ना जाने क्यु ये खुदा ऐसे खेल खेलता हैं, नही लिखा हैं जो तकदीर मे क्यू दिल उसी से जोडता हैं।"

©ayush_tanharaahi

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